साईट में खोजें

२५८ ॥ श्री लंगड़ी माई जी ॥

पद:-

जे जन बसैं मिथिला नगर।

जाप बिधि सतगुरु से जानै मिलै तब सुख इधर।

ध्यान धुनि परकाश लय हो मिटै असुरन रगर।

सुनै अनहद मिलैं सुर मुनि चखै अमृत गगर।

सामने सिय रहैं हर दम परै प्रेम क लंगर।

अन्त तन तजि लेहिं निज पुर छोड़ि जग जिमि कगर।६।