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२३ ॥ श्री ईसा जी ॥

जारी........

अब रह्यौ बाकी कछु नहीं अमृत पिया अनुपम जवन ॥१४॥

ईसा बिचारा क्या कहै सब आप ही कहते हरी ॥१५॥

सुमिरन करै हरि नाम का संसार से होवै बरी ॥१६॥


दोहा:-

किरिया आसन सब कियो षट मुद्रा लियो जान ।

कुंभक रेचक पूरकहु प्राणायाम विधान ॥१॥

जड़ समाधि हमने सिखी मिट्यो न तन मन रोग ।

सूरति शब्द के जाप से जीव ब्रह्म संयोग ॥२॥

राज योग याको कहैं अति ही सुलभ उपाय ।

रोम रोम ते नाम धुनि सन्मुख रूप दिखाय ॥३॥

सूरति शब्द कि जाप है अजपा याको जान ।

दुर्लभ अति सो सुलभ भा सतगुरु किरपा मान ॥४॥

तत्व ज्ञान सिर मौर यह ईसा की सुनि लेहु ।

जिह्वा नयन न कर हिलैं सुरति शब्द पर देहु ॥५॥

संसकार जेहि ठीक हों सो पावै यह जान।

बदलै ताहि स्वभाव तब होवै ज्ञान महान ॥६॥

समय बँधे अनुकूल हैं सब जीवन के जान ।

या से धीरज को धरै सतगुरु बचन प्रमान ॥७॥

जो जेहि लायक जीव जब वैसेहि बुध्दि विचार ।

वैसे वाके संग लगैं संसकार सरदार ॥८॥

मुद्रा सब साधन किये रूप अनूप दिखाय ।

ररंकार की धुनि खुली अनहद नाद सुनाय ॥९॥

इड़ा पिंगला सुखमना में ह्वै कर जब जाय ।

षट चक्कर औ नागिनी सातौं कमल दिखाय ॥१०॥

भेदन होवैं चक्र सब कमल उलटि सब जांय ।

तिरबेनी स्नान करि शून्य में लय ह्वै जांय ॥११॥

सुधि बुधि सबै हिराय गै जानि को पावै अंत ।

आतम परमातम मिले शुभ औ अशुभ जरंत ॥१२॥

ईसा कहैं हर दम भजौ प्रणतपाल भगवन्त ।

दीन होहु हरि द्रवहिं तब आवागमन नसंत ॥१३॥

शरीर क पूरब सामने, पीठी पश्चिम जान ।

उत्तर में शिर है सही दक्षिण पगन प्रमान ॥१४॥

इड़ा नारि का रंग हरा पिंगला स्वेतहिं जान ।

सुखमन ताके मध्य में लाल रंग परमान ॥१५॥

सुखमन नाड़ि में चित्रणी पीत रंग है मान ।

श्याम रंग है वज्रणी अभ्यन्तर धुनि जान ॥१६॥

शुक्ल धुवाँ सम लखि परै तामे तेज महान ।

सुर शक्ती मुनि ऋषि तहां वायू रूप लुभान ॥१७॥

ब्रह्म नाड़ि याको कहत मानों बचन प्रमाण ।

जो या विधि को जान लेय सोई पुरुष महान ॥१८॥


चौपाई:-

गुदा क चक्र पीत रंग जानौ। इन्द्री चक्र लाल है मानो ॥१॥

नाभि चक्र तो श्वेत सोहाई। हिरदय चक्र श्याम है भाई ॥२॥


दोहा:-

कंठ के चक्र क हरा रंग, जानै चतुर सुजान ।

अगिनी के सम रंग है, त्रिकुटी चक्रहिं जान ॥१॥

कमलन के रंग नहिं कह्यो, जानहिं परम प्रवीन ।

श्री शिव जी शुकदेव जी, भेद विलग करि दीन ॥२॥


चौपाई:-

शिव की देखि स्वरोदय लीजै। ज्ञान स्वरोदय पर मन दीजै ॥१॥


दोहा:-

सोपान स्वरोदय लिखा है, श्री नानक जी जान।

देखि लेय जो कोइ चहै, दीन बताय प्रमान ॥१॥

राज योग की खेचरी, सुखमन घाट पै जान ।

सतगुरु से उपदेश लै, तब पावै कोइ जान ॥२॥

जारी........