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२२ ॥ श्री मोहम्मद साहब जी ॥

जारी........

पाओगे जब इस भेद को छोड़ोगे तब सब खेद को ।

दुबिधा है बैरिन जानकी फरजन्द साँच बयान की ॥४॥

टाटी कपट की दै दिया यासे हुआ गन्दा हिया ।

अपना मिटाओ आप पाओ फिर समाओ आप में ॥५॥

अनहद बजै सब दुःख भगै फिर आप ही हौ आप में ।

तन मन से प्रेम लगाइये अन्दर में काबा जाइए ॥६॥

तसबी जबै मन की फिरै सब काम तब तेरा सरै ।

रोज़ा नेवाज तभी छुटै जब सामने सूरत डटै ॥७॥

भाड़ा भरम का फूटिगा पढ़ना कुरान का छूटिगा ।

कहते मुहम्मद हैं सही मुरशिद बिना मिलते नहीं ॥८॥