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१० ॥ श्री स्वामी रामानुजाचार्य जी ॥


चौपाई:-

जहँ जेहि वस्तुक कारज होई। हरि इच्छा प्रगटत तहँ सोई ॥१॥

भजहु नाम तन मन हरषाई। हरि की गति कोइ पार न पाई ॥२॥