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॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥(८)

 

हे पवन तनय गुण गावत हौं,

चित दै के कृपा करिये हनुमाना।

दूसर कौन बखान सकै गुण,

राम लला जब आप बखाना॥

भूत पिशाच नगीच न आवत,

जो सुमिरे दुख दूर पराना।

कहैं दास नगा धनि बांके बली,

अब मो पर होहु दयालु सुजाना॥

 

दोहा:-

यह अष्टक हनुमान की, पढ़ै सुनै जो कोय।

नागा सुख सम्पति लहै, युग युग हरिजन होय॥