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॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥(६)

 

बजरंग बली अस ना चहिये,

तुम्हरे आछत दुख पावत हौं।

धन धाम कुटुम्ब छुड़ाय दियो,

सब के दरबार फिरावत हौ॥

कोऊ देखि हंसै कोऊ गारी बकै,

सबके मुख थोपि खिलावत हौ।

जब दास नगा के सहायक हौ,

तब काहे न आश पुरावत हौ।४।