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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

भव चक्कर से नेक न डरते पढ़ि सुनि सुन्दर भासन करते।३।

अंधे कहैं लोभ में बहते सतगुरु करिके नाम न गहते।४।

 

दोहा:-

ऐसी नकल से बगल ह्वै नाम जपै बनि दीन।

अंधे कहैं जियतै तरै नाम रूप लव लीन॥

 

दोहा:-

झापड़ मारो नाम का लापर जावैं भागि।

अंधे कह सतगुरु बचन जियति जाव अब आगि।

 

पद:-

मन की मानी है जबानी ज़िंदगानी नाश हो।१।

पाप घानी में है सानी नहिं अघानी आश हो।२।

सतगुरु ज्ञानी को ले जानी तब तो ध्यानी पास हो।३।

गुन लो बानी अंधे ठानी कुल की कानी दास हो।४।

 

शेर:-

जो उपासना में उपासा रहेता। अंधे कहैं वह जगत में बहेता॥

 

पद:-

सब शक्ति मान हैं राम कृष्ण श्री बिष्णु कोइ निर्गुन कहते।

अंधे कहैं नाना खेल करैं भक्तन से बिलग नहीं रहते।

सर्गुण लीला मुद मंगल है सुर मुनि सब भाव यही कहते।

जिनको यह आनन्द प्राप्त भयो वे दूसर बात नहीं चहते।

पढ़ि सुनि के ताना तान रहे सतगुरु करि नाम नहीं गहते।५।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि हो तन त्यागि जक्त फिरि नहिं ढहते।६।

 

दोहा:-

दया धर्म नहिं जानते करते पूजा पाठ।

अंधे कह बेकार है जैसे सरिगे काठ॥

 

पद:-

फंसि गयो जीव झंझट में मन चोर करत नित झगड़ा।१।

सतगुरु बिना मिलै नहिं मारग शेर से बनिगो छगड़ा।२।

पढ़ि सुनि लिखि मुनि की बानी कबहूँ नेक न पकड़ा।३।

अंधे कहैं अंत जम बांधै रहि रहि देवैं रगड़ा।४।

 

पद:-

मति करना गुलामी गुलामों के संग।१।

वो तो है अंधे औ बहिरे बोलत बचन भुजंग।२।

वाकी दारु शान्ति चुप्य है बिष सब होवै भंग।३।

अंधे कहैं शत्रु औ मित्र में समता रहै सो चंग।४।

 

पद:-

अपिमान को सह कर के सनमान जो करै।

अंधे कहैं सच्चा भगत जियतै में वह तरै॥

 

दोहा:-

रीति बड़ेन की है यही करै जो कोइ अनरीति।

अंधे कह निज रंग में बोरि बनावै मीति॥

 

पद:-

पर पानी की संगति करि से साधक ह्वै जाते चापर।१।

बिषय बसना चोर औ मनुवा हर दम मुख दें झापर।२।

माया अपने रंग ढंग से पाप के देती है पापर।३।

अंधे कहैं दोऊ दिशि थू थू सुर मुनि बोलैं हा लापर।४।

 

पद:-

सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै तन मन प्रेम लगै वापर।१।

वाकी दोउ दिसि जै जै होवै अजा न हेरि सकै तापर।२।

बड़ी भाग्य से यह पद पावै राम सिया खुश हों जा पर।३।

अंधे कहैं चेति सब भक्तौं जियति तरा नहि हो लापर।४।

पद:-

महात्मन में हो प्रीती तो फिर अब क्या भजन करना।१।

कहैं अंधे मिला मन जब जियत ही हो गया तरना।२।

भक्त भगवन्त एकै है वेद युग देव मुनि बरना।३।

नैन औ श्रवन खुल जावें गहै सतगुरु कि जो शरना।४।

 

पद:- बे दामन बिकता राम नाम कोई गाहक नहीं दिखाय।

जारी........