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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

सोरठा: अंधे कह यह सत्य सुर मुनि सब हैं मानते।

जे जन कहैं असत्य ते जानौ नहिं जानते॥

 

पद:-

तरिगे तरिहैं श्री राम नाम ध्याय के।१।

सतगुरु की बानी को पकड़ौ भागैं चोर सबै चिल्लाय के।२।

दुख सुख को सम समझौ भक्तौं तन मन प्रेम में ताय के।३।

अंधे शाह कहैं कर जोरे सब के हित पद गाय के।४।

 

पद:-

सतगुरु कि वाक्य पर चलि साधक कहा रहे हैं।

धुनि ध्यान नूर लय में गोता लगा रहे हैं।

शुभ अशुभ कर्म भक्तौं चेतो जला रहे हैं।

सिय राम उनके हरदम सन्मुख में छा रहे हैं।

जियतै में सिद्धि ह्वैगे सुर मुनि जस गा रहे हैं।

अंधे कहैं तन तजि कै साकेत जा रहे हैं।६।

 

पद:-

लुफ़त उसको मिल गया सुमिरन कि बिधि जो जानता।

ध्यान धुनि परकास लै औ रूप सन्मुख तानता।२।

सतगुरु बिना कूचा कठिन पढ़ि सुनि कथै अज्ञानता।३।

अंधे कहैं सुकृती पुरुष कोटिन में कोई मानता।४।

 

दोहा:-

गंगा जल सम जल नहीं राम नाम सम नाम।१।

तप धन सम कोइ धन नहीं छिमा बाम सम बाम।२।

नर तन सम कोइ तन नहीं पर स्वारथ सम काम।३।

अन्न वस्त्र सम दान नहीं अवध धाम सम धाम।४।

अंधे कह सतगुरु बचन भजन करो बसु जाम।५।

आना जाना जाय मिटि अंत में अचल मुकाम।६।

 

पद:-

मन किमिं ठीक भजन में जमता।१।

सतगुरु से जप भेद जान ले सब में होवै समता।२।

अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि मिलैं सुगमता।३।

कमल चक्र शिव शक्ति जागै भागै जग की ममता।४।

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने थमता।५।

 

पासै कूप भरा परि पूरन जीव प्यास से लंभता।६।

जे नहिं चेतैं आवैं जावैं छूटैं नहीं अधमता।७।

अंधे कहैं जियति जे जानै ते नहिं गर्भ में रमता।८।

 

पद:-

खेलैं घुमनी कोड़रैया लाल जसुदा नन्द कुमार।

कटि करधनी पगन में पौटा दोउ हाथन चमकैया लाल।

दौर कूद में छम छम धुनि हो बोलैं हंसि तुतलैया लाल।

रहि रहि तारी खूब बजावैं आँखैं मीचि लेवैया लाल।

पुर के नर नारी बहु आवैं छिन छिन लेंय बलैया लाल।५।

 

दोउ कर ताल देंय सब बोलैं ता थैया ता थैया लाल।

नाना बिधि के खेल करैं नित सब उर प्रेम पगैया लाल।

को बरनै देखत बनि आवै शारद शेष थकैया लाल।

नभ ते सुर मुनि जै जै बोलैं फूलन की झरि लैया लाल।

भाग्य सराहैं पुर वासिन की मातु पिता जिन पैया लाल।१०।

 

सतगुरु करै भजन बिधि जाने सन्मुख में छबि छैया लाल।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि बिधि का लिखा कटैया लाल।

नागिन जगै चक्र खट बेधैं सातौं कमल फुलैया लाल।

अमृतपियै सुनै घट अनहद बाजत बिमल बधैया लाल।

सुर मुनि आवैं हिये लगावैं लेवैं गोद गुदैया लाल।१५।

 

अंधे कहैं अंत निज पुर हो छूटै जग चकरैया लाल।१६।

पीत झँगुलिया तन में राजैं चम चम चम चमकैया लाल।

जारी........