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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

धीरे धीरे पुष्ट जात ह्वै पकड़ै गहि फिरि गाता को।

जैसे बिल्ली लै कर चलती मुख में दाब के बच्चे को।

वैसे श्री हरि गोद में लेते भजन करैया सच्चे को।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो पाटो भव के गच्चे को।५।

 

अंधे कहैं अंत निजपुर हो नहिं भरोस इस ढच्चे को।

वैसै सतगुरु हेरि के करिये महा प्रकास के ज्ञाता को।

अंधे कहैं कटै भव बंधन फेरि जगत में आता को।८।

 

पद:-

श्री शुक देव नवो योगेश्वर बाल खिल्य सनकादिक प्यारे।

श्री अवध में नित प्रति आवत श्री दसरथ के द्वारे।

राजा लखि कै चरन परै फिरि लै रनिवास सिधारें।

राम लखन औ भरथ सत्रुहन बाल रूप गभुवारे।

दौरि के सबको लिपटैं हंसि हंसि सब सुन्दर सुकुमारे।५।

 

चारिउ थ्त्र्क्तट से सब मिलि बैठैं बीच में शुक बैठारे।

भाँति भाँति पकवान मिठाई माता थार संवारे।

लै कर जाय बीच में धर दें जल जारिन भरवारे।

हिल मिलि कै सब पावन लागैं एक एक मुख डारें।

अमर काक तहँ पर चलि आवैं कों कों करैं दुलारें।१०।

 

सब मिलि कै पकवान मिठाई उन सन्मुख छितरारें।

कूदि कूदि चूगैं तन मन ते प्रेम के आँसु गिरारे।

जल सब पीवैं उन्हैं पिलावैं स्ववरन बेला धारे।

गुरु वसिष्ट औ रानी राजा ताकि ताकि हुलसारे।

सुर मुनि नभ ते जै जै बोलैं फूलन की झरि लारे।१५।

 

भाग्य सराहैं मातु पिता की पुरवासिन बलिहारे।

सतगुरु करैं भजन बिधि जानै कर्म भर्म को मारे।

नाना बिधि की लीला देखै बरनत शेश चुपारे।

यह नर देह सुरन को दुर्लभ युग श्रुति शास्त्र पुकारे।

अंधे कहैं भजै निशि बासर ते सब जग से न्यारे।२०।

 

पद:-

राम कृष्ण नारायण नाम। चारौं युग सब दिशि सरनाम।

कैसौ पापी हो बदनाम। अन्त समै जो सुनि ले नाम।

सीधे जावै हरि के धाम। जम गण दूरि ते करैं प्रणाम।

जो बेहोश सुनै नहिं नाम। तन तजि नर्क पड़ै बे काम।

अंधे कहैं भजै बसु जाम। ते तन तजि जावैं निज धाम।५।

 

सतगुरु बचन भजन है आम। जे न गुनैं भा बिरथा चाम।

मरत समै पापी ले नाम। सो पावै हरि ढिग बिश्राम।

परम पुनीत राम का नाम। तन मन ते जपिये नर बाम।८।

 

पद:-

नाम रूप परकास समाधी। चारिउ मेटैं सबै उपाधी।

पढ़ि सुनिकै जे बटते बाधी। अंधे कहैं तो हैं बकबाधी।

सतगुरु करिके जो आराधी। सो जानो चारिउ को साधी।

द्वैत भाव की भागी आंधी। शुभ औ अशुभ को जियतै रांधी।

मन को संग में राखै बाँधी। दोनो दिसि महकै जिमि गाँधी।५।

 

चौपाई:-

सतगुरु चरनन में लव लागी। मैं तैं मोर तोरि सब भागी।१।

सो जानो जियतै गा जागी। नाम रूप का भा अनुरागी।२।

ध्यान प्रकाश समाधि में पागी। कर्म जरें दोउ ब्रह्म कि आगी।३।

अंधे कहैं वही बड़ भागी। तन तजि जगत बमन सम त्यागी।४।

 

पद:-

सर्वेश्वर नाम आप का है सब से हौ न्यारे औ सब में।१।

है अकह अलेख अपार अकथ सब खेल आपका पग पग में।२।

जो भजै तुम्हैं सो तरि जावै फिर जनमै मरै न इस जग में।३।

जारी........