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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

नागिन जगै चक्र हों चालू कमलन होंय पसरना।

अंधे कहैं भजन यह सांचा सब के हित हम बरना।

जे चेतैं ते मुक्त भक्त हों जग नहिं होय बिचरना।१०।

 

पद:-

सातौं दिवस औ बारह मास। चौबिस घंटा रुप प्रकास।१।

नाम कि धुनि हर शै से खास। देखै सुनै राम का दास।२।

अंधे कहैं भयो सुख रास। सतगुरु करि पायो सब पास।३।

आने जाने का दुख नास। मिलिगा अवध धाम में बास।४।

 

दोहा:-

तबालत भजन करने में तो लानत जिन्दगी को है।

कहैं अंधे तरै कैसे न करता बंदगी को है।

नवो ग्रह शान्ति हों उसके जो नौ द्वारेन को तै कर ले।

कहैं अंधे वही भक्तौं भजन के सुख को बै करले।४।

पद:-

दिन तिथि मास महूर्त रासि ग्रह औ नक्षत्र सब जाने।१।

दसौ दिसा औ समै जोग पल दंड नाम सुख साने।२।

जौन कार्य सौंप्यो प्रभु जा को सो सिर धरि के ठाने।३।

अंधे कहैं बचन सतगुरु के सुनि हम भेद बखाने।४।

 

पद:-

मन से लड़ौ जबरदस्ती से।१।

सतगुरु से सब दांव जानि कै मारि देव दस्ती से।२।

हारि जाय तब संग में लागै भजन करौ मस्ती से।३।

अंधे कहैं अंत निजपुर हो छूटौ दुख बस्ती से।४।

 

पद:-

गर्भ की बाकी पड़ी किस्ती तो उसकी कीजिये।

अंधे कहैं सतगुरु से सुमिरन जान कर फिर दीजिये।

नाम की धुनि हो रही इस तार पर चढ़ि रीझिये।

परकास ध्यान समाधि सन्मुख रूप सिया हरि लीजिये।

अनहद सुनौ सुर मुनि मिलैं अमृत गगन में पीजिये।

जियतै में भक्तौं जानि कै इस रंग में तौ भीजिये।६।६।

 

पद:-

सतगुरु से सुमिरन जानि कै जियतै में करलो फैसला।

अंधे कहैं चेतौ नहीं तो दाबिहै माया गला।

नाम धुनि परकास लै में कर्म दोनो हैं तला।

अमृत अनहद पियै सुनै सुर मुनि सभी कहते भला।

षट रूप सन्मुख में रहै जिनका सभी जां झल झला।५।

 

छोड़ि तन श्री अवध गा जो सब से ऊँचा है टिला।

भक्त सच्चा पहुँचता जिसने सिखा तेहरी कला।

सूरति शबद का मार्ग ये कोटिन में पावै कोइ लला।८।

 

पद:-

भक्तौं डारौ रैनि में डाका।

बारह पर दुइ बजैं बैठि जाव ध्यान करौ अजपा का।

रेफ़ बिन्दु की धुनि हो जारी बिजै होंय नौ नाका।

त्रिकुटी पर आऊम बैठे खोलैं फाटक बाँका।

तिरबेनी असनान लेव करि देखौ खेल वहां का।५।

 

अमृत पिऔ सुनौ घट अनहद सुर मुनि कहैं पितु माका।

तेज होय चलि जाव दसा लै रूप न रंग सनाका।

उतरौ सन्मुख हर दम सोहैं बरनौ किमि जस छाका।

सतगुरु बिना मिलै नहिं मारग करौ चहै तै फाँका।

जतन पाय कर पतन न होवै मुक्ति भक्ति को ताका।१०।

 

उत्पति पालन परलै करतल सत्य बचन अंधरा का।

अन्त त्यागि तन पहुँचि बिराजौ जन्म स्थान जहाँ का।१२।

 

दोहा:-

जीभ नैन कर हिलैं नहिं मन समाय जाय नाम।

अंधे कह अजपा यही मिलै जियति निज धाम॥

जारी........