॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
पद:-
गरभ ऋण को भक्तों चुकाना पड़ेगा।
कहैं अंधे चेतो नहीं तो हड़ैगा।
बिना सतगुरु कीन्हे को, आगे बढ़ेगा।
धुनी तेज लै रूप सन्मुख लढ़ेगा।
वही मातु पितु का दुलारा कढ़ैगा।
रहनि औ गहनि औ सहनि में मढ़ैया।
रहै एक रस फिर न बातें कढ़ैगा।
सदा संत भगवन्त कीरति पढ़ैगा।८।
पद:-
मन दिवान ह्वै गो खपकान।
सतगुरु करि जप भेद जान लो तब होवै कल्यान।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख सिया भगवान।
सुर मुनि मिलैं बजै घट बाजा करैं अमी रस पान।
नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल फुलान।
अंधे कहैं अन्त निज पुर हो आवागमन नसान।६।
चौपाई:-
चिंता चोरन की है भगिनी। करि व्यभिचार गई बन पतिनी।१।
सब को संग नचावत नटिनी। ऐसी कठिन बनी है ठगिनी।२।
धधकाये तन में रहे अगिनी। जरत नहीं संगै रहै नगिनी।३।
बज्र फाँस कर में लिए ढँगिनी। अंधे कहैं फँसाय के टँगिनी।४।
पद:-
चिंता माया की है बिटिया। वाके संग रहत छ: नटिया।२।
जीव को पीटत लै कर सँटिया। नेकउ रहम नहीं जिमि बटिया।४।
डाटैं कहैं बड़ा तू झँटिया। करि ले नीक काम अब घटिया।६।
चौतरफ़ा से डारे खटिया। पहरा कड़ा कहां को हटिया।८।
दोहा:-
सतगुरु से बिधि जान लें,ते उबरैं नर नारि।
अंधे कहैं जे चूकिगे, तिन्है लेयगी मारि।१।
पद:-
नन्द क ढोटा नाचत छम छम।१।
सखा सखी संग में सब राजत भूसन बसन बदल हो चम चम।२।
ताल गान का भाव बतावत मुरली बाजत थम थम।३।
सतगुरु करि निरखौ निशिवासर, अंधे कहैं छूटि जाय हम हम।४।
पद:-
मन तुम कैसी करत किसानी।१।
नीक करत तो जीव सुखी हो नागा ते हैरानी।२।
चारि पदारथ पास धरे हैं कर्म हीन किमि जानी।३।
अंधे कहैं शान्ति ह्वै बैठो छोड़ो ऐंचा तानी।४।
पद:-
धरती अगिनि अकास पवन औ मिले एक में पानी।१।
यह आश्चर्य की बात नहीं है तिर्गुन की सैलानी।२।
सार वस्तु का अनुभव भक्तों कोटिन में कोइ जानी।३।
अंधे कहैं बिना सतगुरु के पहुँचै को रजधानी।४।
दोहा:-
रवि की सोभा दिवस की निसि की सोभा चन्द्र।
अंधे कह मन हरि भजै जीव होय निरद्वन्द।१।
पद:-
यह तन भक्तों बेकार है हरि नाम बिना जाने से।१।
बिना श्रद्धा के धिक्कार है पढ़ि सुनि ताना ताने से।२।
मन फिरता खात पछार है शुभ काम न पर जाने से।३।
अंधे कहैं गिरत गँवार है, सतगुरु के बिन पाने से।४।
पद:-
हमरे बनिकै गुनिये भक्तों हमरी बदनामी करावति हौ।
अनरीति से हम नहिं हैं तुम्हरे क्यों मुख में मसी लगावति हौ।
निज कुल की रीति को भूलि गये ढोंगिन के संग ठगावति हौ।
सतगुरु बिन कैसे राह मिलै पढ़ि सुनि और न समुझाव्ति हौ।
जारी........