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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

कमलन का होवै फुलवार। उड़ै तरंग बनो मतवार।२०।

 

गद गद कंठ नैन जल धार। पुलकैं रोम न पलकैं मार॥

बोल न फूटै सकौ निहार। भई बासना सब जरि छार॥

छूट गये आचार विचार। अब विज्ञान दशा भई यार॥

जान के भक्तों बनो गँवार। तब बच करके होगे पार॥

चहुँ दिशि लागे वज्र किंवार। सारी सिद्धी दीजै टार॥

अंधे कहैं यही लें मार।३१।

 

पद:-

होशियारी जे बघारते हैं, वे सब किनारे पुकारते हैं।१।

जे निज को जियते सम्हारते हैं वे हर दम हरि को निहारते हैं।२।

जे धर्म कारज सँवारते हैं वे दूसरों को सुधारते हैं।३।

जे दूसरों को बिगारते हैं अंधे कहैं जम शिकारते हैं।४।

 

पद:-

इन्द्रीजीत मूत्र को रोकै, भजन करै होवै जोगी।१।

अंधे कहैं मलै जो रोकै, सो ह्वै जावेगा रोगी।२।

मूत्र के रोके धातु कड़ी हो, बल देवें सब नस पोंगी।३।

भोजन सतोगुणी नित पावैं, नहीं तो होवैगा ढोंगी।४।

 

पद:-

मल औ मूत्र के बेग को गृही कभी न रोकै ले मानी।१।

नैनन की रोशनी बिगड़ि है धातु जायगी ह्वै पानी।२।

राम भजन औ घर के कारज दोनों बिगड़ैं हो हानी।३।

अंधे शाह की विनय जौन कोइ समझेगा सो शुभ प्रानी।४।

 

पद:-

अगणित वस्तुन का कारबार भगवान तुम्हारे नैनों में।

बनि दीन जाय सतगुरु की शरन मन लावे उनके बैनों में।

धुनि नाम प्रकाश समाधि रूप हर दम तब रहिहै चैनों में।

अमृत पावौ घट साज सुनौ सुर मुनि के घूमैं अयनों में।

नागिन जागै सब चक्र चलैं सब कमल खिलैं निज टहनों में।

अंधे कहैं तन को छोड़ जाय फिर पड़ै न जग के धैनों में।६।

पद:-

एक सैन से हो पालना औ तारना संसार का।१।

नहिं शेष शारद जानते क्या खेल है सरकार का।२।

विश्वास सतगुरु बचन पर सो हो गया दरबार का।३।

अंधे कहैं प्रेमी को नित भोजन मिलै भण्डार का।४।

 

पद:-

तन मन प्रेम से पढ़ै सुनै जो बाल्मीकी रामायन जी।

राम सिया सन्मुख में राजैं जे मुद मंगल दायन जी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पायन जी।

अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि संग बतलायन जी।

नागिन जगी चक्र षट बेधें सातौं कमल फुलायन जी।

अंधे कहैं अन्त निजपुर हो आवागमन मिटायन जी।६।

 

पद:-

जै भैरव भक्तन रखवारे।१।

दण्ड चक्र तिरशूल लिहे कर दैत्य दलन संहारे।२।

भजन में बिघ्न करत मन ठगवा इनको करहु किनारे।३।

अंधे शाह करैं यह बिनती चरन कमल सिर धारे।४।

 

पद:-

जै काली किरपाली माई।१।

भक्तन के संकट चट मेटत नैन कि कोर फिराई।२।

मन चोरन का शोर मिटावो भजन करौ हर्षाई।३।

अंधे शाह पुकार करत हैं बार बार सिर नाई।४।

 

पद:-

जै जै जै जै जै गणनायक।१।

भक्तन के प्रभु हो बलदायक।२।

मन औ चोर भजन के बैरी अति ही हैं नालायक।३।

अंधे शाह को साह बनावो मुद मंगल वर दायक।४।

 

जारी........