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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

सिया मातु मेरी। करो अब न देरी। भई है अबेरी। रहा मैं दहेरी॥

लखौ नैन फेरी। कटे पाप बेरी। गहै फिर न छेरी। उसे दो खदेरी॥

धुनी नाम केरी। सुनौं मैं घनेरी। सदा रूप षट सामने हो महेरी॥

तपो धन कि ढेरी। धरों खूब गेरी। शरनि अंधा तेरी। हंसै दै के थेरी।८।

 

भज मन नाम रामानंद।१।

जिनहीं सुमिरे पाप नासत मिटत गर्भ का फंद।२।

शिश्य द्वादस जो रहे हर समै परमानंद।३।

अंधे कहैं प्रभु सहित हमसे कह्यो करहु आनंद।४।

 

अंधे कह सुमिरन बिना पड़ी भंवर में नाव।

सतगुरु बिन भरमत फिरै चलै न एकै दांव।१।

अंधे कह सुमिरन बिना नाव डूबि मंझदार।

सतगुरु बिन बस नहिं चले कोहि बिधि होवै पार।२।

 

पद:-

सतगुरु करो सोते हो क्यों जागौ तो फल नर तन क लो।

धुनि नाम लै परकास सन्मुख रूप जीवन धन क लो।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो अमृत गगन ते छन क लो।

नागिन जगै चक्कर चलैं गमकैं खिले कमलन क लो।

मुक्ति भक्ती ज्ञान जियतै दीनता से बन क लो।

अंधे कहैं तन तजि चलो निजपुर सिंहासन मन क लो।६।

पद:-

मंजन फल देखिये ततकाला। काक होहिं पिक बकहु नराला।१।

सतगुर करि फेरो मन माला। सारे चोरन हटै बवाला।

लै परकास धुनी हो आला। सन्मुख श्री सिय दसरथ लाला।

सुर मुनि मिलैं बिहंसि कहैं डाला। चौरासी से भयो बहाला।

नागिनि चक्र कमल जगि जाला। महक से तन मन हो मतवाला।५।

 

अमृत पियो सुनो घट ताला। मधुर मधुर हर दम चट काला।

इस विधि मंजन करि नर बाला। कितने पहुँचि गये सुख साला।

काक से चातक होत विशाला। बक से होते सुघर मराला।

सदा एक रस राखै ख्याला। अंधे कहैं खुलै तब ताला।९।

 

श्री सतगुरु के चरन पर लो। तन मन प्रेम से सुमिरन कर लो।२।

लै परकास नाम धुनि जर लो। सन्मुख राम सिया को ठर लो।४।

शांति दीन बनि जियतै तर लो। अंधे कहैं त्यागि तन घर लो।६।

 

सतगुरु के मकतब में पढ़ि के बनौ मास्टर जब पक्के।

लै परकास नाम धुनि होवैं चोर न देवैं तब धक्के।

सुरमुनि मिलैं सुनो घट अनहद अमृत पियो खूब छक्के।

नागिनि जगै चलैं सब चक्कर कमल के बिकसैं फंक्के।

जियतै में तै करौ यहाँ तब बिधि के लिखे कटैं अंक्के।५।

 

सन्मुख राम सिया रहैं हर दम प्रेम में तुमरे तब टंक्के।

आवै तार तबक चौदह से देहु जवाब बिहंसि ठक्के।

अंधे कहैं अन्त निजपुर लो इस प्रकार से हो हक्के।

 

अल्ला तुमरे पास है, परदा द्वैत क लाग।

अंधे कह मुरशिद करौ जियति जाव तब जाग।१।

खुदा तुम्हरे पास हैं अल्ला खुदी क दीन।

अंधे कह मुरशिद करौ जियति लेव तब चीन्ह।२।

लै परकास औ नाम धुनि सिया राम से मेल।

अंधे कह सतगुरु कह्यो लव सतसंग का खेल।३।

भक्त में आई दीनता पाप भयो सब नास।

अंधे कह तन छोड़ि कै पायो निज पुर बास।४।

 

सतगुरु से सुमिरन जानि कै जो मन को नाम पै नो गया।

चोर सारे शांति भे सब पाप ताप को धो गया।

जारी........