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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

अंधे कह हरि पुर बसै सत्य मानिये तौन।६।

पद:-

ठगवा सब लूटत मोर महल।१।

मन को संग लीन्हे कीन दहल।२।

चौतरफ़ा नक़ब लगाये हैं उन्हीं की हरदम चहल-पहल।३।

अंधे कहैं केहि बिधि जीव बचै, रोवै सर पीटै टहल टहल।४।

 

पद:-

मन बदन के संग बदनाम हुआ, सब मिलि वाको कहते बद्दू।१।

वै पांच अकेल करैं अब क्या सब का वह कहन लगा दद्दू।

तब ठगवा मिल के गौर कीन इस के सर पाप खूब लद्दू।

तन छूटै जीव को जम पकड़ैं कहैं काह कमाय धरे भद्दू।

तब बोल न आवै डाट सुनावैं पकरि के झिटिकि करैं रद्दू।५।

 

ले नर्क में डारि देंय बोलैं अब पहुँचि गये अपनी हद्दू।

मन काहे काबू नहीं किहे अब कलपन सरु सारे पद्दू।

अन्धे कहैं भालन मारु देंय छेदैं जैसे पक्का कद्दू।८।

 

दोहा:-

मन काबू बिन यह दसा हाय हाय चिल्लाय।

एकौ पल कल नहिं मिलै अन्धे कहत सुनाय॥

 

पद:-

नहीं है ताकत किसी में ऐसी जो चोरों से मन निसार लेवै।

बिना भजन का सहारा पाये हम अपने को खुद बिगार लेवैं।

जो सन्त सच्चे हैं सुनिये भाई वै आलस तन से निकार देवैं।

तो चोर सारे रहैं किनारे वै कार अपना खुद टार लेवैं।

धुनि नाम लै तेज पाय करके सिय राम सन्मुख निहार लेवैं।५।

 

पियै अमी रस मिलैं सब सुर मुनि अनहद कि प्यारी गुमकार लेवै।

जगा के नागिन घुमा षट चक्कर कमल भि सातों उलार लेवै।

खुशबू के मारे दिमाग तर हो स्वरूप अपना संभार लेवै।

तवाफ़ कर ले सब लोकों का चलि चिराग़ घट में भी बार लेवैं।

सतगुरु से सीखै सुमिरन कि बिधि को जुटै मगन हो बहार लेवैं।१०।

 

फिर वै तो पक्के ह्वै मल्ह जावैं जम मृत्यु कालै पछार लेवैं।

तन त्यागि अन्धे कहैं चलै घर लखि उनको उठ कर सरकार लेवैं।१२।

 

दोहा:-

चलि बैठे निज धाम में राम रूप ह्वै जाय।

अंधे कह फिर जगत में कभी न चक्कर खाय॥

पद:-

हैं कोढ़ी अंधे जगत में कितने जो नाम लेकर के मांग खावैं।१।

जो हट्टे कट्टे लखैं शुभ कारज बजाय तारी हंसी उड़ावैं।२।

दया तो हम को है आती इन पर परै नरक चलि तो को छुटावै।३।

कहैं यह अंधे धनि हरि की माया कहां तलक हम तुम्हें लिखावैं।४।

 

दोहा:-

जैसे जाके कर्म हैं वैसे दुख सुख पाय।

कोइ सिंहासन चढ़ि चलै कोइ घसीटे जाय।१।

अंधे कह इस खेल को कहँ लगि को कहि पाय।

हरि की लीला अगम है सुमिरौ सब मन लाय।२।

 

पद:-

सतगुरु को मन देकर भक्तौं उनहीं का फिरि ध्यान करै।१।

सो जानो जियतै तरि जावै सुर मुनि सब सनमान करैं।२।

सनमुख राम सिया छबि छावैं नाम प्रकास समाधि परै।३।

अँधे शाह कहैं तन त्यागौ फेरि जक्त नहिं पैर धरै।४।

 

पद:-

सतगुरु के चरनन जो परता, सो भक्तों जियतै में तरता।१।

दया धर्म से अनुभव फुरता राम नाम में मन है जुरता।२।

निश्चय लागि जाय जब सुरता, तन्मयता हो नेक न दुरता।३।

त्यागो कपट ककार निठुरता, अन्धे कहैं होय तब पुरता।४।

 

पद:- करो सतगुरु भजो हरि का। यहाँ कोई न तेरी लरिका।२।

जारी........