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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

ठुमरी:-

श्री कृष्ण चन्द सुख कन्द संग श्री राधे प्यारी झूलैं।

सब गोपी ग्वाल मिलि देत ढार छिन छिन में बोलैं।

जय जयकार तन मन छबि लखि फूलैं।

है बिमल प्रीति गे जियति जीत किमि नाम रूप को भूलैं।

अंधे कहैं बृज के जीव जौन तन तजि के पहुँचे,

हरि के भौन छूटी भव जाल के शूलैं।५।

 

दोहा:-

गान में बैजू बावरे तान सेन सरनाम।

सुर मुनि सब के दर्श भे अन्त गये हरि धाम।

देव गान बैकुण्ठ में जाय के देय बिठाय।

बुरा गान अन्धे कहैं नरक को देय पठाय।

 

शेर:-

ध्यान तिरगुण के परे है राम नाम का।

अन्धे कहैं मारग मिलत साकेत धाम का।

 

पद:-

मन सतगुरु बचन पै लाये, ते राम नाम धन पाये।

परकाश ध्यान लय धाये, बिधि लेख को धोय बहाये।

षट रूप सामने छाये, लखि मन्द मन्द मुसकाये।

अनहद सुनि अमृत खाये सुर मुनि पग सीस नवाये।

नागिनि औ चक्र जगाये, सब कमलन उलट खिलाये।५।

तन छोड़ि वतन को धाये अन्धे कह गर्भ न आये।

जे समुझत नहिं क्या गाये ते फिरत जगत मुँह बाये।७।

 

पद:-

सतगुरु से नाता राखौ, तब नाम रूप रस चाखौ।

कटु बैन सुनौ मत माखौ, हरि सुमिरौ नेक न भाखौ।

तब द्वैत धरौ गहि ताखौ, खुलि जांय कान औ आँखौं

गहि दया धरम की साखौ, अन्धे कह गर्भ न काँखौं

 

पद:-

चहुँ दिसि उमड़ि के घिरने लागे, कैसे बादल काले काले सावन भादों

की बरसात।

कौंधा लपक नैन चौंध्यात बहते सरिता ताल औ नाले।२।

बोलत झींगुर दादुरि मोर, कैसा उठत सुहावन शोर, मानहु मन को

संग में ढाले।३।

सतगुरु करो होय कल्यान, अन्धे कहैं बचन लो मान, जियतै नर

तन का फल पाले।४।

 

शेर:-

दुनियां से मेल करत घूमत भगवान से मेल नहीं करते।

यह मेल तुम्हैं कर देय फेल अन्धे कहैं चेत नहीं करते॥

 

पद:-

सब खेल दिमाग़ से जारी हो तुम मन को जहां लगावोगे।

सतगुरु से जप बिधि जानि जुटो चक्कर से ऊपर जावोगे।

है नदी एक राहैं अनेक पहुँचे बिन किमि लखि पावोगे।

यह कबीर दास जी की बानी जानी जिन तिन में आवोगे।

धुनि ध्यान प्रकास समाधी हो बिधि लेख की रेख मिटावोगे।५।

 

अनहद सुनके अमृत चखिये सुर मुनि के संग गुन गावोगे।

नागिनि जागै षट चक्र चलैं सातौं फिर कमल खिलावोगे।

क्या उड़ैं तरंगें बिबिधि भांति उस सुख में बोलि न पावोगे।

हो कण्ठ बन्द रोमांच होत नैनन से नीर बहावोगे।

सिय राम की झाँकी क्या बाँकी निज सन्मुख में छबि छावोगे।१०।

 

यह सहज समाधी है भक्तों पितु मातु के लाल कहावोगे।

तन त्यागि अवध में पहुँचि जाव अंधे कहैं गर्भ न धावोगे।१२।

 

पद:-

झूला झूलत जगत बिहारी मुरली बाजत प्यारी जी।

बाम भाग में राधे सोहैं कर को गले में डारी जीं।

सखा सखी सब ढारै देवैं निज निज पारी जी।

जारी........