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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(८)

शेर:-

वह न आवैंगे खलक पै रूह के जाने के बाद।१।

जिसने मुरशिद करके सारी बासना कर दी है खाद।२।

अंधे कहैं वह धन्य हैं जियतै मिटाया कुल का दाग।३।

सिय राम ने गोदी बिठाकर भक्ति की सर दी है पाग।४।

 

शेर:-

अंधे कहैं सतगुरु करो तब काम प्यारे नीक हों।

औझड़ लगावो नाम की तब चोर सारे ठीक हों।

तूल करते चोर सोर मन को लीन्हे संग में।

अंधे कहैं सतगुरु करो तब जीति पावो जंग में।

तकरार करते चोर हर दम मन भी उनके साथ है।

अंधे कहैं सतगुरु करो तब तो तुम्हारे हाथ है।६।

 

शेर:-

चौ चन्द करत हैं चोर नित मन को मिलाये घूमते।

अंधे कहैं सतगुरु करो देखो कदम सब चूमते॥

 

पद:-

हरि सुमिरन बिन भयो निकम्मा। पकड़ि लीन चोरन की अम्मा।२।

हर दम नाच नाचते गम्मा। सार वस्तु किमि लें निज दम्मा।४।

सतगुरु करि सुख दुख में सम्मा। वाके घट पट होवैं चम्मा।६।

अंधे कहैं क्या तुम्मा हम्मा। अणू अणू में श्री हरि रम्मा।८।

 

पद:-

हरि नाम बिना सब काम फीक कोइ भव से होवै पार नहीं।

कहैं अंधे शाह सतगुरु की सीख संसार असार में सार नहीं।

मन जिनका चोरन संग कीन श्री हरि का हो दीदार नहीं।

लै ध्यान प्रकाश मिलै कैसे धुनि जारी जब रंकार नहीं।

जुटि जावौ बनि कै सूर बीर है कर्म भूमि खिलवार नहीं।५।

 

जियतै में तै करि लेव यहां तब तुम पर कोइ फटकार नहीं।

तन तजि के अवध में दाखिल हो जहां महा तेज अंधियार नहीं।

उठि के प्रभु आसन देंय तुम्हैं ऐसा कोइ करता प्यार नहीं।८।

सोरठा:-

शोहदे भाँड़ ज़रूर हंसी मज़ाक में पूर हैं।

अंधे कह वै सूर राम भजन करि घूर हैं॥

 

कीर्तन:-

जै सिया राम श्री अवध धाम। जै प्रिया श्याम श्री नन्द ग्राम।२।

जै उमा शम्भु कैलाश धाम। जै रमा बिष्णु बैकुण्ठ धाम।४।

कहैं अंध शाह सब को प्रनाम। हौं तुरुक जाति धुनियां निकाम।६।

सब जीवन का जानो गुलाम। श्री सीता मढ़ी में है मुकाम।८।