साईट में खोजें

॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

अंधे कहैं छोड़ि तन नर्क में हाय हाय करि चिल्लाते।

 

पद:-

हज्जकीन कहते सब हाजी। मन जीते बिन पाजी।१।

अंधे कहैं अंत हो दोज़क अल्ला भये न राजी।२।

मरसिद करै भजन बिधि जानै जियतै जीतै बाजी।३।

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने साजी।४।

 

पद:-

मुझ पै निगाह फेंको मुरली सुनाने वाले।१।

नैनों क करि इशारा भृकुटी फिराने वाले।

मुसक्यान क्या रसीली तन मन लुभाने वाले।

आँखें अजब कटीली जादू चलाने वाले।

सखियाँ सखा हठीली संग में नचाने वाले।५।

 

पापिन पै करि के दाया हरि पुर पठाने वाले।

भक्तों में प्रेम पाया पासै बिठाने वाले।

अन्धा शरनि में आया गोदी उठाने वाले।८।

 

ब्रह्म गायत्री त्रगुणातीत। र रं की धुनि सुनि ये मीत।१।

सतगुरु वचन पकरि परतीत। जियते मन को लीजे जीत।२।

 

अंधे कहैं यही कुलरीत। छटि जाय तन मन की सीत।३।

सबके हित गायन यह गीत ये जिन गुनैते दोउ दिसि तीत।४।

 

जाको प्रेम है सब्द में सो वामें मिलि जाय।

जाको प्रेम प्रकास में सो प्रकास ह्वै जाय।

जाको लैमै प्रेम है सोलै में मिलि जाय।

जाको रूप में प्रेम है सो रूपै ह्वै जाय।

जे चारिउ को जानिगे ते हर दम हरसाँय।५।

 

अंधे कह तन छोड़ि के सत्यलोक गे पाय।

अंधे कह सतगुरु कह्यो मम मन गयो रामायण।

जे सतगुरु के लाल हैं तेईस भेद को पाय।८।

 

दोहा:-

झूठे ज्ञानी हैं बने मानत ना न रूप।

अंधे कह बेकार हैं जैसे टटर सूप।१।

पढ़ि सुनि कै उपदेश दें खुले न आँखी कान।

अंधे कह तन छोड़ि कै जमपुर करैं पयान।२।

 

दोहा:-

नाम रूप परकास लै जियति लेय जो जान।

अंधे कह सो मुक्त है पायो भक्ति औ ज्ञान।

 

दोहा:-

अंधे कहैं प्रभुका सगा तन छोड़ि निजपुर जगमगा।

 

सोई गुणाज्ञ सोई गुराज्ञ

सोई बड़ भागी। सोई बड़ भागी

जो रघुवीर जो रघुबीर

चरन अनुरागी। चरन अनुरागी।

 

 

शुभम्

 

शम्पूर्णम्

 

जै सत्गुरु महराज जी की।