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॥ श्री बचावन शाह जी, मेरठ ॥

जाते भक्त निज धाम को चढ़ि यान हरषाते हुऐ। 
सुर मुनि सभी जै जै करैं निज साज चटकाते हुए॥ 
रंग-रंग की माला गले में, फूलों कि पहनाते भये। 
पंखा मुरछल आसा वल्ल्म, झण्डा फहराते भये।४। 

नाचे अप्सरा गान करि करि, फूल बरसाते हुऐ। 
सतगुरू करो नैनन लखौ, क्यों जक्त में माते हुए॥ 
धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख, श्याम छवि छाते हुए। 
देव मुनि भेटैं तुम्हें, हरि के चरित्र गाते हुऐ।८। 

अनहद सुनो अमृत पियो, पितु मातु के काते हुऐ। 
लेते कमा जे जन यहाँ, ते बैठि वह खाते हुऐ॥ 
जिसने न जाना जियत में, ते दोनों दिशि ताते हुऐ। 
पीटे नरक में दूत हरदम, कल न पल पाते हुऐ।१२। 

मानों कहा नर नारि चेतो, क्या हौ बतलाते हुऐ। 
गर्भ का रिन दो चुका, हम सब को समझाते हुऐ॥ 
खोते समय अनमोल हो, नाहक में अलसाते हुऐ। 
दुर्लभ यह तन चारों पदारथ, देत मन भाते हुऐ।१६।