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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३ ॥ (विस्तृत)

४५. राम, कृष्ण, काली, दुर्गा, शिव सब एक ही रूप हैं। 

४६. सादा भोजन, सच्ची कमाई। 

४७. भूख भवानी भोजन पावैं। 
तब भजन मे मन लगवावें। 

४८. कुछ गरीब हैं, भक्त हैं। महाराज (दादा गुरु) जब जाते तो २ मील पहुंचाने जाते, रोते। कहते - तुम जाव अयोध्या। हम तो प्रत्यक्ष चरनोदक लेते हैं। 

४९. जितना भोजन कम होगा, उतना शरीर हलका रहेगा। काम हो जायेगा। 

५०. माला का दाना छोटा हो, ज्यादा लंबा न हो। जप माली (माला रखने के वस्त्र) मंे ही जपना चाहिए। अंगुली निकली रहे। गुप्त रूप से जपना चाहिए। और ज्यादा विधि विधान नहीं है। वैजन्ती काले दाने का माला भी श्रेष्ठ है। 

५१. थाली में स्वादिष्ट पदार्थ रखा हो वह न खाये। और (कुछ सादा) खा ले। 

५२. भजन सबसे नहीं हो सकता। कहीं लाखों करोड़ों में एक कर सकता है। 

५३. इसको (मन को) जितना ही उत्तम पदार्थ भोजन में दोगे, बढ़िया वस्त्र और आराम दोगे, उतना ही खायेगा और गुर्रायेगा। अर्थात् परेशान करेगा और अन्त में दुख भुगायेगा। 

५४. श्रद्धा विश्वास से पढ़ने, लिखने, सुनने से मति शुद्ध होकर पिछले पाप कटते हैं। भगवान में प्रेम बढ़ता है। 

५५. गुरू-कृपा जेहिं नर पर कीन्हीं, तिन्ह यह जुगति पिछानी। 
नानक लीन भयो गोविन्द संग, ज्यों पानी में पानी॥ 

५६. नेक कमाई का सादा सूक्ष्म भोजन करै। 

५७. तुम जानो, भगवान जाने, तब भजन करके पार हो सकते हो। सबसे नीचा अपने को मानो, मान बड़ाई में न परो, तब आँखी-कान खुल जांय। 

५८. जब मौत और भगवान का डर होता है, तब भजन में मन लगता है। (जो) समय, स्वांस, शरीर अपना मानते हैं, वह भगवान को कुछ नहीं मान सकते। 

५९. एक स्त्री को समझाना:-

बिना क्रोध जीते भगवान से मेल नहीं हो सकता। जब बेखता बेकसूर कोई मारे या गाली दे, तुम्हें रंज न हो, तो भगवान प्रकट होकर सर पर हाथ फेर दें। तुम जब घर की बातें न सह सकोगी तो बाहर की कैसे सह सकोगी।