॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३१ ॥ (विस्तृत)
४१५. घर में सबका ताल मेल एक हो।
४१६. सेवा यही है जो आज्ञा हो पालन करे। स्नान कराना, पैर दबा देना यह सेवा नहीं।
४१७. यहाँ की इज्जत पर लात मारे तब वहाँ की इज्जत मिले। साधक तारीफ न चाहे। भगवान जाने तुम जानो। तब काम बनेगा। मन लग जाय काम बन जाय।
४१८. (बीमारी में) मल मूत्र से निपट कर कपड़े बदल दे। गंगा जल तुलसी दल रेणुका मुख में डाल ले। लेटे लेटे न माला हो सके, मुख में जपे।
४१९. ऐश आराम छोड़ देने पर भजन हो सकता है।
४२०. आडम्बर छोड़कर नेम टेम करना परता है।
४२१. जिन स्त्रियों का पाणिग्रहण (विवाह) नहीं हुआ हो और युवा अवस्था को प्राप्त हो गईं और कामातुर होकर पर पति से भोग किया एक ही बार, वह फिर अगले सात जन्मों तक तरूणाई (जवानी) में वैधव्य को प्राप्त होती हैं। इस पाप का उद्वार हरि नाम से ही हो सकता है। जब कोई सत पुरूष मार्ग सुझा देवे।
४२२. पुण्य से भोग, पाप से रोग। अपने अपने कर्म के अनुसार जीव पैदा होते, खाते पीते दुख सुख भोगते हैं। सब काम का समय भगवान बांधे है।
४२३. कर्म प्रधान भाखा (कहा) गया है। कर्म से श्रेष्ठ, कर्म से भ्रष्ट। एक भाई जज, एक चपरासी है। सब में कर्म और स्वभाव अलग है।
४२४. मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राईवर है। अच्छी जगह ले जाय तो जीव की अच्छी गती हो, खराब जगह ले जाय तो खराब गती हो। जो गेहूँ बोयेगा तो गेहूँ मिलेगा, जो जहर बोयेगा तो जहर पावेगा। जो इन बातों को नहीं समझेगा व नहीं मानता, वह मौत भगवान को भूला है। समय, स्वांसा, शरीर, धन, मकान, लड़के, परिवार सब अपना माने बैठा है। ऐसी भगवान की माया है। उसी में आसक्त कर दिया। १ घड़ी हरि की तो ५९ घड़ी घर की, तो भगवान माफी देते हैं। एक घड़ी नहीं भगवान में मन लगता है।
४२५. बगदाद ईरान से मुसलमान अवध में आये हैं। पेड़ तरे (तले) एक लंगोटी (ही) में उमर काटी है। कोई १ मूठी जौ, कोई एक मोठी चना से उमर काटी है। ऐसे ऐसे भक्त १२ आये हैं, सब कुछ प्राप्ति कर लिया है। दूसरा दुनिया का काम न जाना। हमारी पुस्तक में सात सौ मुसलमान औरत मर्द हैं। उसमें बहुत अजर अमर हैं।
४२६. हमारे यहाँ ४० औरतें, २१ घर वाले हैं। परिवारदार हैं पर भगवान की बड़ी दया है। बाकी सब बनुआ भक्त हैं। कहने पर खुश हो जांय, वै अपनी तारीफ चाहते हैं। मान अपमान खाये लेता है।
४२७. अपने को सबसे नीचा मान ले, वही भजन कर सकता है। हमसे हमारा पाखाना पेशाब ठीक है। उसकी खाद बनती है। फल, अन्न पैदा होता है। दूसरे का पेट भरता है। हम झूठे साधू पंडित बनते हैं। काल (मृत्यु) के गाल (मुख) में हैं।
४२८. जब दस्त पेसाब हो जाता है तब शरीर हल्का हो जाता है। आलस्य भाग जाता है।
४२९. जो भक्त सच्चे गरीब हैं वे हमसे बताते हैं - हमारे शरीर से सब देवी देवता निकलते हैं, आप निकलते हैं। संग बात-चीत करते हैं। खाते पीते हैं फिर हमारे शरीर में समा जाते हैं। हमने कहा - यह शरीर विराट है। अन्धे मियाँ ने यह सब लिखाया है। अगर ऐसे ही सब हो जाय तो हमारी सृष्टि की कमी हो जाय। बड़ी भाग्य से ऐसे भक्त होते हैं।