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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल २७ ॥ (विस्तृत)

३५६. साधक मान बड़ाई पर लात मारे। 

३५७. दुनिया से दोस्ती कर लो या भगवान से - दोनो में से। ऊपर से दुनिया - भीतर से भगवान से। तब काम बनता है। 

३५८. भगवान की लीला भगवान जाने। 

३५९. एक बार रोय दो, बस काम बन जाय। 

३६०. उनका नाम है अधम उधारन। 

३६१. भगवान के नाम में बड़ी ताकत है। 

३६२. गुण अवगुण से संसार भरा है। गुण ग्रहण कर लो अवगुण छोड़ दो। 

३६३. राम भजन अति दुर्लभ। बहुत कठिन है। जियतै में मर जाना परता है। कोटिन (करोड़ों) में कोई (एक) करता है। 

३६४. भजन घर ही में होता है। हमें ५२ साल यहां हो गये। सब पेट पालते हैं बातें सिखाते हैं। दुनिया का काम अन्ध (अंधा) है। सहन शक्ति नहीं हैं। दीनता, शान्ति, दया धर्म नहीं है। भजन कैसे हो? भजन, सेवा सबकी करने से होता है। हम ने सब जीवों का मल मूत्र धोया है। उसी से कुछ प्राप्त है। तमाम नीच जाति के औरत मर्द नंगे, मैला में परे रहते थे। कोई घर के नहीं छूते थे। हमें हैजा पकर लेगा। हम सब धोकर कपड़े पहनाते दवा देते। जब पेशाब उतरती तो हैजा चली गई। आगे रिषी (ऋषि) लोग सेवा धर्म कराते थे तब भजन खुल जाता था। 

३६५. तुम हमार तारीफ करते हम तुम्हार कर देते, बस यही है। मन की बदमासी कोई रोक नहीं पाते। पानी से ज्यादा शरबत, शरबत से ज्यादा दूध, रोटी से ज्यादा पूरी, पूरी से ज्यादा पकवान खाते हैं। 

३६६. एक मेहतर ६ कोस पर यहाँ से रहता था। सुन लिया था भगवान सर्वत्र हैं। बस झाड़ू लगाने लगा। वो दिन रात बगल में झाड़ू दबाये रहता। कोई पूछता, कहता - रामजी के मेहतर हैं। (उसको) राम जानकी प्रत्यक्ष हो गये। 

३६७. जिसकी जगह नहीं है, परिवार सो जाता है तब वह रात्रि में उठकर अपना काम करते हैं। जिन्दगी का कोई ठेकाना नहीं। मन को काबू करना खेल नहीं है। बड़ी सहन शक्ति की जरूरत है। बिना प्रेम के जीव ईश्वर का मेल नहीं होता। 

३६८. ४० स्त्री २१ ग्रहस्थ बड़े गरीब भजन करते हैं। कुछ पढ़े नहीं। राम राम कहते हैं। सब कुछ होता है। जितना जाने उसमें सन्तोष कर ले। 

३६९. पुण्य से भोग, पाप से रोग। अपने अपने कर्म के अनुसार जीव पैदा होते, खाते पीते, दुख सुख भोगते हैं। सब काम का समय भगवान बांधे हैं। कर्म प्रधान भाखा (कहा) गया है। कर्म श्रेष्ठ से १ भाई जज, एक चपरासी है। सबके कर्म और स्वभाव अलग अलग हैं। मन इस शरीर को चलाने वाला ड्राइवर है। अच्छी जगह ले जाय तो जीव की अच्छी गती हो। खराब जगह ले जाय तो खराब गती हो। जो गेंहू बोयेगा तो गेहँू मिलेगा। जो जहर बोयेगा तो जहर पावेगा। 

३७०. जो इन बातों को नहीं समझता वह नहीं मानता। वह मौत और भगवान को भूला है। वह समय, शरीर, धन, मकान, लड़के, परिवार सब अपना मान बैठा है। ऐसी भगवान की माया है। उसी में आसक्त कर दिया। १ घड़ी हरि की तो ५९ घड़ी घर की। (तब) भगवान माफ़ी देते हैं। १ घड़ी नहीं भगवान में मन लगता है।