॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १ ॥ (विस्तृत)
१५. दीन बन जाओ तो भगवान दयालु हैं ही।
१६. यहाँ की इज्जत को लात मारो तब वहाँ की इज्जत मिले।
१७. (लोग) कहते हैं भगवान की कृपा हो तब होगा। चलनी मे दूध दुहे कर्म का दोष क्यों देवे? जितने भक्त हुए सबने कर्म किया। २ बजे उठ कर भजन किया। २ बजे से ब्रह्म मुहूर्त लगता है।
१८. यदि कहना मान लोगे तो (भगवान के) प्रिय बन जाओगे।
१९. एक बार सच्चे हृदय से रो दो।
२०. पढ़ना लिखना व्यर्थ यदि अमल न हुआ।
२१. जिससे प्रेम हो उसमें सुरति लगी रहे।
२२. अभी जप ही नहीं होता तो ध्यान कैसे होगा? १ माला ब्रह्मगायत्री, १० माला राम जी के, ५ माला महारानी जी के जप पर आ जाओ। प्रात: विशेष लाभप्रद है।
२३. सेवा धर्म से सब काम बन जाता है।
२४. बजरंग बाण के ११ पाठ नित्य करे मन लगाकर, सब काम बन जाए। बिना धुआं कण्डा की आग पर गुगुल की धूप देवे। राख कोरी हांडी में रखता रहे (फिर) नदी (या) गंगा में डाल दे।
२५. जितना होना होता है उतना ही होता है।
२६. जब कुछ न चाहोगे तब वह सब कुछ देंगे।
२७. चिन्ता होने से हीरा की भस्म (श्रेष्ठतम आयुर्वेदिक दवा) खाने से भी फायदा न होगा।
२८. सब का समय बंधा है।
२९. मंदिर मे पूजन कर आओ। भावना प्रधान है, ढोंग न करे।
३०. स्नान, दर्शन, शुभ कर्म, घर जाने को सब पूछते हैं (आज्ञा मांगते हैं)। खराब काम के लिए नहीं पूछते।