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॥ कीर्तन ॥


जै सिया राघवम्। जै प्रिया माधवम् ॥ 
जै रमा केशवम्। जै शिवा शंकरम्॥ 

हम बैठ गये। जब शाम को कीर्तन समाप्त हो गया तो लोगों ने कहा - महाराज, बहुत आनन्द आता है। 

८३. दीन दुखियों पर दया करने से भगवान बहुत खुश होते हैं। भागवत में व्यास भगवान ने कहा है - पर उपकार से बढ़कर कोई भजन नहीं है। जिसके साथ भलाई करोगे, उसकी आत्मा खुश होगी, इसी तरह तप धन इकट्ठा होते होते सब कुछ प्राप्त हो जावेगा। 

८४. पहले (पुराने समय में) ऋषिगण सेवा धर्म सिखाते थे, उसी से पट खुल जाते थे। फिर मंत्र बताते थे। शिष्य के पूछने पर इशारा कर देते थे, उसे पूरा पता चल जाता था। तब पढ़ाते थे। तब शब्द के रूप प्रकट हो जाते थे। सब लीला दर्शने लगती थी। 
८५. पहले पढ़ने से सब दिमाग में भर जाता है, तो द्वैत नहीं छूटता। विद्या मद (विद्या का अहंकार) दीनता नहीं आने देती, उसमें अपनी जीत चाहता है। अविद्या घुसी है।