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॥ अथ नगर भ्रमण वर्णन॥

 

राग कजरी:-

देखन चले नगर गुरु अज्ञा शिर धरि राम लखन लै संग।

वय किशोर एक श्याम गौर एक कर धनु कसे निषङ्ग।

सुन्दर परम अनूप रूप दोउ लाजैं अमित अनङ्ग।

सुर मुनि निरखि चकित छकित भे होश भये सब दंग।

चाल चलत कुंजर सम झूमत उर अति भरा उमंग।५।

 

गुल गुलाब से कोमल मानो बज्र समान हैं अंग।

शूर बीर रणधीर धुरन्धर होय काल लखि तंग।

विश्वामित्र कि यज्ञ सुफल कियो करि कै निश्चर भंग।

चरनन रज परि तरी अहिल्या रही पषाण अपंग।

स्वयं आप अवतरे जगत हित बिष्णु शेष शिव संग।१०।

 

कारन करन अकर्ता आपै नहीं रूप औ रंग।

रूप रंग बनि जात छिनक में कौन करै जग जंग।

पहुँचि गये जब जनक नगर में बालक बहु भे संग।

गली गली औ थली थली औ भवन भवन यह रंग।

जँह देखो तँह घूमि रहे हैं राम लखन दोउ संग।१५।

 

ज्ञान गुमान शान सब जन की उड़ि गई मनहुँ पतंग।

भये अचेत नहीं कछु सुधि बुधि मानहु डस्यौ भुजंग।

सात घरी पर सब की मुरछा जागी फिरि भे चंग।

आये गुरु के ढिग दोउ भाई करुणा निधि सुख अंग।

कृष्णदास कहैं सन्मुख रहते रंगौ नाम के रंग।२०।