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॥ अथ धनुष भङ्ग वर्णन ॥

जारी........

प्रवेशैं बीज फेरि हर्षाय। उठैं कैलाश में पहुँचैं जाय॥

करैं शिव पूजन नित प्रति आय। लगावैं फेरी अति सुख पाय॥

देव सब दर्शन को नित जाँय। करैं पैकरमा मन हर्षाय।१००।

 

राम का हाल सुनो अब भाय। तूरि धनु गुरु ढिग बैठै आय॥

भावना जा की जैसी आय। लख्यौ हरि को सो वैसै भाय॥

लखन तब बैठि संग में जाय। गुरु के बाँये मन हर्षाय॥

बैठि सब सभा के जन तब जाँय। खड़े थे सब के सब तँह भाय॥

उठावत तानत तोरत भाय। रहै सब ठाढ़ न परयौ दिखाय।११०।

 

भये दुख गाढ़े नहीं सुझाय। मनो जादू कोइ दीन चलाय॥

टूटि कै धनुष गिरयौ महि भाय। परयौ नैनन से सबै दिखाय॥

कियो ये चरित राम ने भाय। जानिगे सुर मुनि प्रेम लगाय॥

फूल बरसैं सुर नभ ते भाय। करैं जै जै की धुनि हर्षाय।११८।