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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

चरण स्पर्श करन हित भाय। लालसा रहै न चलै उपाय।३८५०।

 

आज धन्य भाग्य हमारो आय। करैं स्पर्श सुरन हर्षाय॥

योग अस सतयुग परय्यौ न भाय। भयन जब हिरण कश्यप जाय॥

लड़ाई हरि के संग भइ आय। मारि बैकुण्ठ को दीन पठाय॥

आप हिरणाक्ष भयो बड़ भाय। योग आपौ फिर ऐस न पाय॥

लड़ाई हरि ही से भई भाय। मारि बैकुण्ठ दियो सुखदाय।३८६०।

 

रूप बाराह आप हित भाय। बनायो हरि जग में यश छाय॥

हमारे हित नर सिंह कहाय। कीन क्या लीला हरि सुखदाय॥

योग तीसर द्वापर में भाय। होव शिशुपाल नाम हम जाय॥

आप का नाम दन्त बक्राय। होय जग नर औ नारी गाय॥

प्रकट हरि होइहैं तहँ पर जाय। नाम श्री कृष्ण तहाँ कहवाय।३८७०।

 

मारिहैं कर कमलन ते भाय। चलैं बैकुण्ठ फेरि हर्षाय॥

श्राप मिटि तीनौं जन्म की जाय। होंय फिर द्वारपाल दोउ भाय॥

खेल बाजीगर कैसा भाय। नचावैं जैसे बानर लाय॥

राम से कौन लड़ै मम भाय। अंश सब उनके जीव कहाय॥

शेष शिव ब्रह्मा हरि सुखदाय। रहे निशि बासर जिनको ध्याय।३८८०।

 

लड़ै चक्री से घट किमि भाय। देंय जहँ धक्का चट ह्वै जाय॥

सनातन की मर्य्याद है भाय। कार्य्य सब होत निमित्त लगाय॥

महिष मेढ़ा मदिरा को भाय। खाँय नहिं पियैं सुनो चित लाय॥

प्याज लहसुन मसूर गजराय। माँस मदिरा जो कोई खाय॥

असर यकइस दिन तक तन भाय। रहत है धर्म शास्त्र बतलाय।३८९०।

 

मरै जो बीच में नर्कै जाय। भेद हम ठीक दीन बतलाय॥

आप सब जानत हौ मम भाय। आप को कौन सकै समुझाय॥

मँगावो गंगा जल कछु भाय। पियैं औ चलैं लड़न हित भाय॥

सुनै यह बैन दशानन राय। भवन को चलै हिये हर्षाय॥

सहस योधन ते कहै सुनाय। संग मेरे चलिये सब धाय।३९००।

 

सुनैं सब चलैं संग हर्षाय। पहुँचि श्री गंगा भवन को जाँय॥

कहै रावण तब बचन सुनाय। उठावो दुइ दुइ घट सब भाय॥

लै चलो कुम्भकर्ण ढिग धाय। पियैंगे गंगा जल लघु भाय॥

चलैं सहसौ योधा लै धाय। धरैं घट कुम्भकर्ण ढिग जाय॥

लखै औ तन मन ते हर्षाय। सोवरन कलशन जल सुखदाय।३९१०।

 

कलश दुइ दोनों करन उठाय। नाय लेवै मुख में जल भाय॥

इसी बिधि सब कलशन जल भाय। पाय कर खड़ा होय हर्षाय॥

कलश सब योधा लेंय उठाय। धरैं रावन के भवन में जाय॥

श्री गंगा जल कलशन भाय। एक सौ मन एक कलश में आय॥

वजन में कलश जानिये भाय। एक ही एक चालिस मन आय।३९२०।

 

कोस दुइ ऊँचा लम्बा भाय। मील भर चौड़ा उदर दिखाय॥

इसी का आधा रावण राय। ऊँच लम्बा चौड़ा था भाय॥

दशानन का आधा पुत्राय। नाम घननाद जासु का भाय॥

शम्भु औ देबी को बर भाय। घटै औ बढ़ै औ जाय बिलाय॥

राक्षस वंश को बर यह भाय। होय परगट फिर तरुण दिखाय।३९३०।

 

राक्षसी एक एक सहस्त्र प्रगटाय। चरित अब कुम्भकर्ण को भाय॥

कहैं कछु सुनिये तन मन लाय। कहै वीरन से हाँक सुनाय॥

तयारी करो लड़न की भाय। सुनत ही शूरबीर सब धाय॥

पास में आवैं मन हर्षाय। गर्जना करैं जोर से भाय॥

चलै नारायण को मन ध्याय। गर्द अस्मान में जावै छाय।३९४०।

 

सूर्य्य छिपि गये अँधेरिया आय। जहाँ मुर्चा बन्दी है भाय॥

जारी........