साईट में खोजें

॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

कहैं तब एवमस्तु रघुराय। दीन तुम को माँग्यौ राय॥

बंटै परसाद तहाँ फिर भाय। कौन कहि सकै खात बनि आय॥

पाय सब जल पीवैं हर्षाय। शान्त चित्त सबै कटक सुखपाय॥

कहै रावन तब बचन सुनाय। जाँय प्रभु गृह को अब हम भाय।२२४०।

 

काम अब रह्यौ नहीं कोइ भाय। शम्भु प्रतिमा पधरी सुखदाय॥

कहैं प्रभु महिमा हर की गाय। करै तन मन से जो सेवकाय॥

दरश पावै शिव उमा के भाय। शम्भु फिर मम ढिग देंय पठाय॥

चढ़ावै गंगोत्री जल लाय। मुक्ति भक्ती ता को मिलि जाय॥

प्रेम निश्चय जा को ह्वै जाय। उसी का काम सरै सब भाय।२२५०।

द्रोह जो शिव से करिहै भाय। नर्क वह एक कल्प भुगताय॥

शम्भु में हम में भेद न भाय। आत्मा एक देह दुई आय॥

भेद करने से नर्क को जाय। अभेद को मुक्ति भक्ति हो भाय॥

सुनै रावन तन मन हर्षाय। चरण पर परै नैन जल छाय॥

उठावैं प्रभु उर लेवैं लाय। बरनि को सकै शेष नहिं गाय।२२६०।

 

कहैं प्रभु सुनो दशानन राय। गाँठि अब छोरौ हर्ष से आय।

जौन माँगेव सो पायो राय। देर अब काहे रहेव लगाय॥

सुनैं यह बैन दशानन राय। छोरि गठि बन्धन दे हर्षाय॥

कहैं प्रभु सुनिये लछिमन भाय। जाव रावण संग सिय लै भाय॥

देर अब नहीं करो सुखदाय। पठय कर लौटो मन हर्षाय।२२७०।

 

जानकी प्रभु चरनन परि जाँय। चलैं लछिमन संग मन हर्षाय॥

बैठि जावैं रथ पर तब भाय। परै रावन प्रभु चरनन धाय॥

उठै औ रथ पर बैठै जाय। उड़ावै रथ को फिरि हर्षाय॥

पहुँचि अशोक बाटिका आय। उतरि माता बैठें सुखदाय॥

उतरि लछिमनहुँ परैं हर्षाय। बैठि जाँय माता ढिग सुखपाय।२२८०।

 

दशानन सिया चरन शिर नाय। लखन को उर में लेंय लगाय।

चलैं लंका में पहुँचैं जाय। युगुल छबि नैनन गई समाय॥

लखन माता से कहैं सुनाय। जाव हम प्रभु ढिग सुनिये माय॥

परैं चरनन में मन हर्षाय। मातु लें लखन को उर में लाय॥

चलैं जस सौ पग लछिमन भाय। देव तहँ पवन पहुँचि जाँय आय।२२९०।

 

चढ़ावैं काँधे पर हर्षाय। उतारैं उदधि निकट में आय॥

करैं अस्नान लखन हर्षाय। फेरि प्रभु के ढिग पहुँचैं आय॥

चरन परि बैठैं मन हर्षाय। राम के बांये दिशि सुख पाय॥

देंय प्रभु कन्द मूल फल भाय। पाय लेवैं अति प्रेम लगाय॥

कटक से पूछि सलाह को भाय। कहैं प्रभु दूत लंक कोइ जाय।२३००।

 

कहै वह रावन से समुझाय। नीति की बातें मन चित लाय॥

न मानै तब यह होय उपाय। लड़ाई ठनै युद्ध हो भाय॥

कहैं तब जाम्वन्त हर्षाय। पठै दीजै अंगद वीराय॥

प्रथम हनुमान गये सुखदाय। काम अस कीन्हो कहा न जाय॥

फेरि लछिमन जी गे हर्षाय। लै आये रावन सीता भाय।२३१०।

 

प्रतिष्ठा शिव की ह्वै गई आय। भयो आनन्द जगत सुखदाय॥

बालि का तनय बड़ा बलदाय। काम करि आवै देर न लाय॥

कहैं अंगद से श्री रघुराय। जाव गढ़ लंक मनै हर्षाय॥

परैं चरनन में अंगद धाय। चलैं मन सुमिरि राम सीताय॥

जाय माता ढिग पहुँचैं जाय। परैं चरनन में तन उमगाय।२३२०।

 

सिया कर शिर पर देंय फिराय। उठैं तब उर में लेंय लगाय॥

कहैं जेहि हेतु लंक पुर जाँय। सुनैं माता तन मन हर्षाय॥

चलैं शिर नाय लंक में जाय। बिभीषण के गृह पहुँचैं आय॥

मिलैं दोउ प्रेम से अति हर्षाय। कहैं सब हाल उन्हैं समुझाय॥

बिभीषण कहैं सुनो मम भाय। न मानै रावण यह बचनाय।२३३०।

जारी........