दो शब्द
हम २८ की उम्र में राम घाट पर अपने गुरु जी परमहंस बाबा बेनी माधौ दास जी महाराज के पास आये। दो माह बाद सबसे पहले शुरु शुरु ध्यान में राम विवाह देखा था। महारानी जी दस हजार सखिन के बीच में जै माल लेकर धीरे धीरे चलती थीं, सब सखी मंगल गाती थीं। २० कड़ी का था। ऐसे स्वर मिले थे मालूम होता था एक जनी गा रही है। हम सुबह लिखना चाहते थे तो महाराज जी ने मना कर दिया। कहा ''पहिले पहिले न लिखौ नहीं तो फिर कुछ न होगा।'' तब सब भूल गए।
फिर एक दिन नित्य दरबार गए। वहाँ बीच में राजा जनक जी बैठे थे, गल मोच्छा रखाये, गोरे गोरे पतरे पतरे, बन्ददार लम्बा अंगरखा पहिने, सफेद धोती, चौकसिया टोपी सर पर थी। हमने पूछा ''आप कौन हैं,'' तो कहा ''हम राजा जनक हैं।'' हम ने कहा ''आप राजा जनक हैं तो हमको राम जी का कोई पद सुनावो।'' तो खड़े होकर, कुछ झुक कर दाहिना हाथ सामने करके पद सुनाने लगे, चारौं तरफ ठौर पर घूमकर पहिली कड़ी सुनाकर मस्त हो गए। तब हमै सब याद हो गया।
इसके ६ माह बाद नानक देव राम घाट पर बट बृक्ष के नीचे दिन में ११ बजे प्रगट हुए। शुकुल धोती पहिने थे जैसी हमारे यहाँ जनेऊ में पहिराई जाती है - पीली रंगी इस रीति से बहुत पंडित अभी पहिरते हैं। सफ़ेद बाल चांदी चांदी ऐसे चमकते थे, दाढ़ी भी सफेद चमकती थी। बहुत गोरे थे, शरीर महकता था। हम दंडवति किया। फिर उनके गले के पास से पेट तक चाँदी कैसी पटरी प्रगट हो गई। उसमें ३५ अक्षरी खुदी थी काली रोशनाई की। हमसे कहा ''सुनावो।'' हमने कहा ''हम रोज़ इसका पाठ करते हैं।'' सुनाया तो वह पटरी उलट गई, पेट की तरफ अक्षर हो गए। हम से कहा ''यह स्तोत्र तुमको सिद्ध हो गया।'' फिर हमने चर्णोदक उतारा तब अन्तर हो गए। फिर थोड़े दिन में प्रगट होकर थोड़ा बताया। फिर तीसरी बार सब बता कर अन्तर हो गए। महाराज (गुरुजी) ध्यान में बैठे थे।
जब हमारी अवस्था ४२ रही होगी, महाराज का शरीर शान्त हो चुका था, तो तमाम अजर अमर सिद्ध संत आने लगे, झुंड के झुंड और कहैं हमारा पद लिख लो, हमारा पद लिख लो। तो हम कहा, ''का हमैं यादि रहैगा।'' तो सरस्वती जी प्रगट हो गईं और आशीर्वाद दिया कि जो कोई जो कुछ तुमको बतायेगा या सुनायेगा सब तुम्हें यादि हो जायगा। तब से हमें यह सब यादि हो जाता है। हर मजहब के सिद्ध सन्त आते, सतसंग करते और अपना कोई पद सुना जाते। तो हम भोर में उठते ही पेन्सिल से कागज पर लिखते। दिन-दिन भर लिखते-लिखते थक जाते तो गोस्वामी जी (तुलसीदास जी) ने कहा - थोड़ी देर दिवाल के भल बैठकर आराम कर लिया करो, तो वैसा करने लगे, तो थकान चली जाती थी।
हमने दो किताब (कक्षा दो तक) पढ़ा है। जो हमको बहुत से अजर-अमर सिद्ध सन्तों ने तथा देवी-देवताओं ने दर्शन देकर लिखाया था, मैं श्री सरस्वती जी की कृपा और आशीर्वाद से उसको लिखने में समर्थ हो सका। किसी किसी महापुरुष ने एक दोहा या केवल एक पद ही लिखाया है और किसी ने अधिक लिखाया है। फिर ऐसे सिद्ध सन्त अभी तक दो हज़ार के ऊपर मिले हैं जिनके पद लगभग ३५०० से ज्यादा ही होंगे। कभी गिने नहीं गए हैं। वह सब हम लिख लेते थे और वह हमारे भक्त साफ साफ नकल कर देते। मास्टर हरनाथ सिंह ने खुशखत लिखा है। चार जिलदें (ग्रन्थ) हैं।
इनको जो पढ़ेगा - प्रेरणा पायेगा, उन बातों पर चलेगा और तदनुसार अपनी दिनचर्या बनायेगा तो उसका जीवन सार्थक होगा, उसका कल्याण होगा।
जिसको जिस देवी देवता में प्रेम हो मन लगाकर और अपने इष्ट में विश्वास करके थोड़ा जप या पाठ नित्य करे।
परमहंस राम मंगल दास
गोकुल भवन, वशिष्ठ कुण्ड
अयोध्या