साईट में खोजें

१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१२९)


पद:-

पाँच चोर मिलि पंच भे मनुवां भा सरपंच।

अन्धे कह मिलि कै सबै जीव को लीन्हे टंच॥

निशि बासर भूखा रहै देत नहीं कोई रंच।

सब मिलि वाको ताकते बैठे ऊँचे मंच॥

सतगुरु करि सुमिरन करो छूटि जाय भव अंच।

अन्धे कह सुनि चेतिये चारि दिवस का ढंच॥