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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३८)


चौपाई:-

जब तक तन में जी दम रहेता। दुख सुख आन पड़ै सो सहेता।

सतगुरु से लै नाम को गहेता। अन्धे कहैं महा सुख लहेता॥


शेर:-

दुख सुख को सम नहि मानता। पढ़ि सुनि के बातैं तानता।

सो हरि को नहि पहिचनता। अन्धे कहैं अज्ञानता।

दाया धरम जिसमे भरा। अन्धे कहैं वह है तरा।

हरि रूप सन्मुख में खरा। धुनि तेज लै में है ठरा।४।


दोहा:-

खुश खुर्रम हर दम रहौ नाम कि धुनि को पाय।

अन्धे कह सुख सार यह इसी से सब प्रगटाय॥