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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३१)


पद:-

मन हमका अब बहकावो ना हम ढूढ़ि के सतगुरु करिल्यावै।

तब भागि कहाँ को जावोगे, झकमारि के मम ढिग आवोगे,

लय नाम के संग में लगि जावै।

धुनि ध्यान समाधि औ तेज मिलै, सन्मुख षट झाँकी आय खिलै,

इस अनुपम आनन्द को ध्यावै।

सब भँग खेल भयो एक मेल अंधे कहैं खरचब औ खावै।४।