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३९० ॥ श्री खफ़ीफ़ शाह जी ॥


पद:-

सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो नाम क जारी तार रहै।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै सन्मुख सिया सरकार रहैं।

अमृत पिओ सुनो घट अनहद मधुर मधुर गुमकार रहै।

सुर मुनि आवैं हिये लगावैं नित संगति सुख सार रहै।

नागिन जगै चक्र सब नाचैं कमलन का फुलवार रहै।५।

दीन बने तो तप धन पावै वरना यह दुशवार रहै।

अन्त समय निज धाम चलो जहँ अमित भानु झलकार रहै।

कहैं खफ़ीफ़ शाह भई पेन्शन यह तुम्हार घर बार रहै।

भीतर से दाया नौकर पर ऊपर ते फटकार रहै।

तब सब काम घरेलू सुधरें मन से हटा गुबार रहै।१०।

खान पान की वस्तु होय वा पर नित यही बिचार रहै।

बालक बृद्ध नौकर देवै पहिले तो हुशियार रहै।

सेवा करना कभी न टरना जब तक कोइ बीमार रहै।

दीन दुखी को जल भोजन औ बस्तर दै चुप मार रहै।

अन्त समय बैकुण्ठ को जावै यह बातैं उर धार रहै।

पर स्वारथ बिन कह खफ़ीफ़ तन दोनों दिशि बेकार रहै।१६।