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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (२३)

भजिये राम नाम सुखदाई।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तब तो भली भलाई।

तन से प्राण पयान करैं जस मिट्टी में मिट्टी मिलि जाई।

की अगिनी में धरि कै जारैं की जल माहि बहाई।

की मिट्टी में खोद के तोपैं कीड़ा पड़ि गंधाई।५।

जीव जन्तु की खोदि के खावैं ठठरी पड़ी दिखाई।

तुमको जम नरकै लै जावैं रोये नाहिं सिराई।

गाज़ी कहैं गुनो सब भक्तों तुम्हरे हित पत गाई।८।