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३७१ ॥ श्री अवसान बीबी जी ॥


पद:-

क्या लिखवावैं कछु कहत नहिं बनि आवै।

हर दम संग में नन्द लाल रहैं नहिं जावै।

नाना बिधि खाना खाय औ मुझे खिलावै।

क्या किस्म किस्म के आब सुगन्धित प्यावै।

जो पहिनै भूषन बसन वही पहिनावै।५।

लाकर के रूह गुलाब मेरे शिर नावै।

खुशबू से तन मन मस्त बोलि नहिं आवै।

ऐछैं केशन को कंघा सुन्दर लावै।

गूँथै केशन में कली जौन मन भावै।

जब लेटै संग में गले मोहिं लिपटावै।१०।

मुख चूमै हँसि हँसि थपकि के फेरि सुलावै।

जब उठने का हो समय तुरन्त जगावै।

आँखैं मुख धोकर पोंछि के गोद बिठावै।

जब करै गुस्ल तब संधै मुझे करावै।

जब बैठि के प्यारी मुरली कूकि बजावै।१५।

सुर मुनि नभ ते लखि फूलन की झरि लावै।

नाचै कर से कर फ़कीर के मुझै सिखावै।

गति नेक न होवै भँग भाव बतलावै।

सब सखा सखी प्रगटैं औ रहस मचावैं।

तहँ मध्य में राधे तारी दै हर्षावैं।२०।

मुरशिद करि के जे शब्द पै सूरति लावैं।

ते जियतै करतल करैं जन्म फल पावैं।

लय ध्यान प्रकाश औ नाम कि धुनि खुलि जावै।

अनहद घट बाजै सुनै अमी पी पावै।

सुर मुनि नित आवैं मिलन संघ बतलावैं।२५।

क्या करैं कीर्तन हरि यश खूब सुनावैं।

नागिनी मातु जगि चक्र वेगि घुमरावै।

फूलैं एक दम सब कमल तरंग उड़ावै।

सन्मुख हरि छबि श्रृंगार छटा तब छावै।

करि नैन सैन औ मन्द मन्द मुसक्यावै।३०।

शुभ अशुभ कर्म जरि जाँय द्वैत बिलगावै।

तब हो निर्भय निर्बैर कौन धमकावै।

अवसान बीबी के सखुन जौन उर लावै।

सो अन्त जाय निज वतन न जग चकरावै।३४।