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२४८ ॥ श्री प्रिया दत्त राम जी ॥


पद:-

सतगुरु करि खेलो सुर मुनि के साथ।

ध्यान समाधि प्रकाश नाम धुनि पाय के होहु सनाथ।

हर दम सन्मुख दर्शन देवैं सिया सहित रघुनाथ।

कठिन कुअंक जांय मिटि सारे बिधि ने लिखा जो माथ।

यहां वहां जयकार उठै तब जब हो ऐसा साथ।५।

चेत करो बिगरी सब सुधरै काहे फिरत अनाथ।

करुणा सिन्धु दबैं पल भर में ऐसे दीनानाथ।

या से अब मम कहा कीजिये ख्याल नाम में पाथ।८।