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९९. ॥ श्री चटाका माई जी ॥


पद:-

शेर को पकड़ि बिलरिया लीन्हा।

भा बेहोश निकसि किमि पावै ऐसा झिटका दीन्हा। बिलरिया०॥

कुल परिवार से मास न्वचावत चढ़ि बैठी धरि सीना। बिलरिया०॥

सतगुरु मिलै कटै यह फन्दा जिमि जल पायो मीना। बिलरिया०॥

ध्यान धुनी परकाश दशा लै सन्मुख श्याम नगीना॥ बिलरिया०५॥

हटै न फिरि सब फ़ौज को मारै जीति लेय करि खीना॥ बिलरिया०।

सोई सूर बीर है जानो जो निज धन को छीना। बिलरिया०।

अनहद नाद सुनै क्या बाजै ताल तान स्वर झीना। बिलरिया०।

सातौं नीरज औ कुण्डलिनी षट चक्कर को चीन्हा। बिलरिया०।

निर्भय मस्त चहैं तहं डोलै हर दम अमृत पीना। बिलरिया०१०।

सुर मुनि सब के दर्शन पावै तन मन प्रेम से दीना। बिलरिया०॥

कहैं चटाका धनि सोइ प्राणी जियति सुफ़ल तन कीन्हा बिलरिया०।१२।