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५० ॥ श्री सुख राज जी ॥


पद:-

ज़मीं उसकी फ़लक उसका सबी जां वह समाया है।

वही निर्गुण वही सर्गुण मुझे सतगुरु बताया है।

ध्यान धुनि नूर लै में जायकर सुधि बुधि भुलाया है।

सुरति औ शब्द का मारग सबी संशय मिटाया है।४।

राम सीता रहैं सन्मुख बड़ा आनन्द छाया है।

मधुर धुनि सुनि रहा अनहद शब्द तन मन लुभाया है।

देव मुनि संग में खेलैं चरित हरि के सुनाया है।

कहैं सुखराज जियतै जानि सो हरि पास धाया है।८।