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८७१ ॥ श्री रमेश जी ॥


पद:-

तन मन से लौ जिसकी लगै उसको मिलैं हरि राति दिन।

धुनि ध्यान लै परकाश पावै एक रस वह राति दिन।

सन्मुख रहैं वाँकी छटा दिल में सटी वह राति दिन।

सुर मुनि करैं बातैं न छोड़ैं साथ उसका राति दिन।

सतगुरु करो पावो गली काहे भटकते राति दिन।

अन्त में साकेत लो जहँ कह रमेश न राति दिन।६।


दोहा:-

महा प्रकाश अखण्ड है सतगुरु दीन लखाय।

कह रमेश सो जानियै जाकी द्वैत बिलाय।१।