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७७७ ॥ श्री भकोसे दास जी ॥


पद:-

सखी गर हठ करैं नैकौं करैं घनश्याम तब नखरा।१।

बसन निज तन के सब फाड़ें भये जीरण मनो चिथरा।२।

मलैं आँखें हथेलिन से मलैं मुख भर में चट कजरा।

बाल जसुमति ने जो गूथे उन्हें तहँ छोर दें बिखुरा।

चलैं रोते भवन अपने कहैं हम लेंय सब मुजुरा।५।

बड़ी चालाक हो बनतीं भूल सब जायगा टसरा।

कहेंगे मातु से जाकर गवाती हम से हैं बनरा।

नचाती नाचती संग में कहैं हंसि हंसि सबै भतरा।

पकड़ि कर मुख मेरा चूमैं लगा गालों पै दें थपरा।

अगर हम कछु वहां बोलैं कहैं हम तो रहीं दुलरा।१०।

भूख लगने पर हम बोलैं कहैं तुम हो बड़े लबरा।

न आने दें हमें सारी करैं हर बार ये रगरा।

धरैं आगे मेरे लाकर बड़ा मिट्टी क एक खपरा।

कोई थोड़ा सा ले आवै भुना कर घर धरा मटरा।

कोई लाकर के दें मलिया में कछु खट्टा मही पतरा।१५।

कोई लाकर के दें रोटी सिकि कच्ची मिले कंकरा।

कोई मकरा के दें चावल कोई दें दाल जो अकरा।

कोई भाजी कटेली की कोई नारी क दें झलरा।

कोई बैठन के हित लाकर धरें टूटा तहां पटरा।

कोई कहती हम मुख पोछैं लिये ठाढ़ी बुरा कपरा।२०।

कोई कहती नहीं जल है कोई कहती कहां गगरा।

कोई कहती और कुछ दो कोई कहती धरा पथरा।

कहैं हम से न खाओगे तो दें तन पर सबै झकरा।

चहूँ दिशि ते सबै घेरे सहारा लेंय हम केकरा।

कोई कहती हम देंय बूरा ले आकर के धरें चोकरा।२५।

कोई कहती खटाई लो सरा दें आम का कतरा।

बिवस हो कर के हम खाने लगें देवैं सबै छितरा।

पकड़ के कर लगा धक्का देंय फिर रास्ता पकरा।

कहां अब भाग जावैं हम मिटे इन सब से जो झगरा।

बचन जब यह सुनैं सखियां जांय एक दम से सब चकरा।३०।

जोड़ कर सब करैं बिनती चहे जो हम से लो सखरा।

प्राण के प्राण हो प्यारे इसी से हम रहीं मल्हरा।

आप हम सब को मत त्यागो बना लो पगन की लतरा।

हँसै घनश्याम यह सुनकर अभी कछु है नहीं बिगरा।

करो सुमिरन लगा तन मन ना होवे एक दिन अतरा।३५।

नहीं तो अन्त में यम दूत बांधे खूब गहि रसरा।

भूल सब जांय बदमाशी मारि तन दूर दें बिथरा।

पकड़ कर जांय लै इजलास पर सुनवायें वहं खसरा।

नहीं बोलत बने यारों मिलैं तहं नरक में बखरा।

भकोसे दास कह चेतो नहीं तो खाओगे खतरा।४०।