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६७३ ॥ श्री अला हुसेन जी ॥ (३)

नाचत हँसत यशुदालाल, संग लीन्हें गोपी ग्वाल।

बाजत बाजा बिशाल उछरि उछरि देत ताल।

गावत क्या ध्रुपद आल, बाँधत ता में पराल।

नभ ते सुर लखत हाल, फेंकत बहु सुमन माल।

सन्मुख राजत कृपाल, जय जय कहि कहि निहाल।

भजिए तजि कपट चाल, छूटै तब दुख की जाल।६।


शेर:-

मतवाल जो हरि नाम का रोज़ा नमाज़ से काम क्या।

जब तक नहीं मिलता वतन, तब तक करो यारों जतन।१।