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६६९ ॥ श्री संठ शाह जी ॥


पद:-

मेरा दीवान होकर मन मुझे जग में फंसाया क्यों।

भरा संग गर्भ में हामी करूं सुमिरन भुलाया क्यों।

मेल चोरों से करके तू मेरा सब धन ठगाया क्यों।

किया चोला मेरा दागी जियति दोज़ख दिखाया क्यों।

सामने आ दिखा मुख तो कहां बैठा लुकाया क्यों।

करूँ मुरशिद तुझे पकड़ूँ मेरा पट्टा छिपाया क्यों।६।