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६१० ॥ श्री विपिन बिहारी खत्री जी ॥


पद:-

हरि अपने हाथ खिलाते, जे भक्त नाम रंग माते।

छिन छिन में उन्हैं हंसाते, मुख चूमि चूमि बतलाते।

मुरली की तान सुनाते, कर तन पर फेरि सुलाते।

बहु लीला नाथ दिखाते, हम सत्य बचन यह गाते।

सतगुरु करि तन मन लाते, सो इस रहस्य को पाते।

तन त्यागि अचलपुर जाते, फिर घूमि न जग चकराते।६।