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५४८ ॥ श्री गोलन्दाज शाह जी ॥


पद:-

अजा छछूंदर के संग रहते पांच बिलौटा दुष्ट।

सारी फौज कहे में उनके घूमि रहे एक मुष्ट।

मन को अपने गोल में राखैं तन में कीन्हिन कुष्ट।

जीव अकेल उपाय चलै नहि हरदम रहते रुष्ट।

सतगुरु करौ नाम धन पाओ काहे बने हो चुष्ट।५।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि मिलै होहु सन्तुष्ट।

सुर मुनि आवैं हिये लगावैं करैं ज्ञान की गुष्ट।

सन्मुख राम सिया छबि छावैं जिनके सम को पुष्ट।८।


सोरठा:-

लेहु निशाना सीख, गोलन्दाज कह जियत ही।

या बिन मिलै न भीख, यहां वहां मानो सही।१॥


चौपाई:-

तन है तोप औ मन है गोला। दागि उड़ा दो भर्म फफोला।१।

सतगुरु से लो जान उपाई। निर्भय राज्य करो हर्षाई।२।

ध्यान प्रकाश समाधि हो भाई। नाम की धुनि एकतार सुनाई।३।

राम सिया जो जग पितु माई। सन्मुख में देवैं छबि छाई।४।