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३४९ ॥ श्री मुन्नू कुम्हार जी ॥


पद:-

सुमिरन बिना गम में घुलो बीमार जिस तरह।

मुरशिद करो पाओ पता दिलदार किस तरह।

मुरली मधुर बजाते सिंगार किस तरह।

नूपुर बजैं छमा छम मतवार किस तरह।

धुनि ध्यान नूर लय हो सुखसार किस तरह।५।

अनहद सुनो बजै घट गुमकार किस तरह।

सुर मुनि के होंय दर्शन करैं प्यार किस तरह।

तन त्यागि लो अचल पुर बलिहार किस तरह।८।