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३४५ ॥ श्री कोक जी ॥


पद:-

सुखी जग में वही जानो जौन प्रभु नाम रंग माते।१।

करै सतगुरु गहै मारग विलग तब तो रहै छाते।२।

ध्यान धुनि नूर लय पाकर तोड़ि दे मृत्यु के दांते।३।

सदा प्रिय श्याम को देखैं करैं जब जी चहै बातें।४।

आय सुर मुनि मिलैं बैठैं सुनै बाजा भजन गाते।५।

कोक कह अन्त तन तजि के अचल पुर बास हैं पाते।

खजाना नाम का जोड़ो बदौलत जिसके जाना है।

करौ सतगुरु पता पाओ हमैं तुम को चेताना है।

मिलै परकाश धुनि औ ध्यान लय में चलि समाना है।

लखौ प्रिय श्याम को हर दम मन्द गति मुसकराना है।१०।

मिलाओ हाथ सुर मुनि संग सुनो घट साज गाना है।

कोक कह अन्त निजपुर लो न आना है न जाना है।१२।