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३२९ ॥ श्री पण्डित श्री धर जी ॥


पद:-

दश आठ षट चारि पढ़ि सुन लिख लीन्हों

पायो नहिं हाय राम नाम सुख सार को।१।

सतगुरु कीन्हें बिन भेद यह मिलत नाहीं

या से चकरावै जीव तोड़ै किमि जार को।२।

ध्यान परकाश धुनि लय रूप पावै गुनि

अनहद बाजा सुनि भर्म फेंकै भार को।३।

हरि यश देव मुनि कहैं आवैं पुनि पुनि

श्री धर कहैं जौन जानै सूत्रधार को।४।