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३१४ ॥ श्री छटी जान जी ॥


पद:-

मन को रंगा नहिं नाम रंग कपड़े रंगा बेकार है।

सतगुरु बिना नहिं पाइहै धुनि ध्यान लय उजियार है।

हर समय आनन्द ले जो प्रेम में मतवार है।

सन्मुख कन्हैया राधिका साजे अजब सिंगार है।

अनहद सुनै सुर मुनि मिलैं शुभ अशुभ बाके छार है।

मिल गई छुट्टी यहां से सो जियत ही भव पार है।६।