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३०६ ॥ श्री बुल बुली शाह जी ॥


शेर:-

बनना सुखी गर तुम चहो सुख का रास्ता खोज लो।१।

मुरशिद से सुमिरन सीख फिरि निज तन में यारों रोज लो।२।

पढ़ सुन के जे हो गये हैं चर वाक मन मुखी।३।

वै हो नहीं सकते हैं कभी मानिये सुखी।४।