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२९० ॥ श्री टिकाना माई कर्नाटकिन जी ॥


पद:-

गुरु करके तन मन सुनो जोड़ना है।

भरम भाँड़ा तब तो उठा झोड़ना है।

असुर सब पकड़ उनका मुख मोड़ना है।

जब काबू में हों तब उन्हैं छोड़ना है।

धुनी ध्यान परकाश लय रोड़ना है।५।

सिया राम सन्मुख सदा ओड़ना है।

टिकाना कहैं ख्याल सब तोड़ना है।

अलग तन से ह्वै हरि के पुर दौड़ना है।८।