साईट में खोजें

२८२ ॥ श्री सेवका यानी खुटकड़ा जी ॥


पद:-

भजन बिन व्याँवरि तन में परिहै।

अबहीं तो कछु ख्याल करत नहिं नर्क में चलि बहु हड़िहै।

तन में खूब बजार लगावै सौदा करि तब कढ़िहै।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानिके तन मन को जे गढ़िहै।

ते जियतै धुनि ध्यान प्रकाश को पाय समाधि में चढ़िहै।५।

हरदम राधा माधौ सन्मुख निरखि निरखि मन लढ़िहै।

अनहद सुनै देव मुनि दर्शै तन तजि जग नहिं पढ़िहै।७।